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राजनीति में दो असमान विचारधाराओं का मेल महज एक संयोग या फिर एक राजनीतिक प्रयोग।
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News Reporter- Kaarunya
Posted- 2 years ago

बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया इस कथन को अक्सर समय-समय पर राजनीति ने चरितार्थ किया है।
दो असमान विचारधाराओं का मेल राजनीति में अब कोई नई बात नहीं रह रही है। राजनीतिक सत्ता का सुख प्राप्त करने के लालच को पूरा करने के लिए अक्सर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का हवाला दिया जाता है। हम पहले भी ऐसी सरकारें देख चुके हैं जो चुनाव से पहले एक दूसरे की धुर विरोधी रहीं तो चुनाव खत्म होने के बाद उन दोनों ने ही मिलकर सरकार बना ली। ताजा उदाहरण के रूप में कश्मीर में 2014 में बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन। तथा 2019 में कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी का महाअघाड़ी गठबंधन। तथा कई पार्टियां चुनाव से पहले भी गठबंधन कर लेती है जिनका इतिहास भूतकाल में एक दूसरे के प्रति घृणा और नफरत से भरा हुआ था।
2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती और अखिलेश यादव का गठबंधन हुआ जिसे महागठबंधन का नाम दिया गया तथा ऐसा ही गठबंधन 2015 में बिहार में भी किया गया था जेडीयू आरजेडी और कांग्रेस तीनों ने मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन ऐसे गठबंधन के प्रयोगों परिणाम सुखमय नहीं होता 2019 लोकसभा चुनाव हारने के बाद मायावती और अखिलेश यादव में दूरियां फिर से बढ़ गईं दोनों ही दल के नेता एक दूसरे के नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगे। तो वहीं बिहार में बना महागठबंधन 2 साल भी नहीं चल सका 2017 में महा गठबंधन टूट गया और जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर वहां फिर से सरकार बनाली। लेकिन वर्तमान मैं कुछ ऐसे ही प्रयोग उत्तर प्रदेश में होने की पूरी संभावना है। आम आदमी पार्टी के समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के कयास लगाए जा रहे हैं।
हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह की मुलाकात अखिलेश यादव से हुई है इस मुलाकात ने राजनैतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। जो आम आदमी पार्टी अपने गठन से पहले मुलायम सिंह यादव पर वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोप लगाया करती थी और भ्रष्टाचार के साथ समझौता ना करने की कसमे भी खाती थी। वही आम आदमी पार्टी अब समाजवादी पार्टी के साथ सरकार बनाने में बिल्कुल भी संकोच नहीं कर रही है।
क्या इसे बीजेपी को हराने की रणनीति मानी जाए या फिर अपनी सत्ता सुख की प्राप्ति के लालच को पूरा करने के लिए एक प्रयोग माना जाए। राजनीति में कहा नहीं जा सकता कौन किसका दोस्त है और कौन किसका दुश्मन। जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस अपनी खानदानी विरासत समझा करती थी। उन्हीं सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी को तोड़कर मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनवा दी।
अब देखना होगा किया संयोग कितना सफल होता है। या फिर इस प्रयोग के क्या परिणाम निकलते हैं?
संपादकीय
शैलेंद्र

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