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डिजिटल क्लास से बच्चों में बढ़ सकता है सर्वाइकल का खतरा, मां बाप इन बातों का रखें ध्यान
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News Reporter- Zindagi Online
Posted- 3 years ago

डिजिटल क्लासेज से बच्चों की पढ़ाई तो हो रही है लेकिन परिवार को इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. साथ ही बच्चों को आए दिन कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है, मसलन- चिड़चिड़ापन, मानसिक समस्याएं और आंखों पर स्ट्रेस.

  • शरीर के आकार में आ सकता है बदलाव
  • उंगलियों से जुड़ी समस्याएं कर सकती हैं परेशान

कोरोना वायरस ने लोगों के सामने नए तरीके से जीने की चुनौती पैदा कर दी है. वो सामान्य दिनों की तरह काम-काज नहीं कर सकते हैं. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि लोग मौजूदा हालात को नया सामान्य मानते हुए आगे बढ़ें. इन दिनों किसी भी मां बाप के लिए बच्चों की पढ़ाई, मुसीबत बन गई है. डिजिटल क्लासेज से बच्चों की पढ़ाई तो हो रही है लेकिन परिवार को इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. साथ ही बच्चों को आए दिन कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है, मसलन- चिड़चिड़ापन, मानसिक समस्याएं और आंखों पर स्ट्रेस. इन्हीं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने डिजिटल एजुकेशन को लेकर जरूरी दिशा-निर्देश जारी किया है.

मंत्रालय की नई गाइडलाइन के मुताबिक प्री-प्राइमरी स्टूडेंस के लिए ऑनलाइन क्लास का समय 30 मिनट से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसके अलावा कक्षा 1 से 8 के लिए दो ऑनलाइन सेशन होंगे. एक सेशन में 45 मिनट की कक्षा होगी, जबकि कक्षा 9 से 12 के लिए 30-45 मिनट की अवधि के चार सेशन होंगे. एचआरडी मंत्रालय ने नई गाइडलाइन के जरिए बच्चों के फिजिकल और मेंटल हेल्थ दोनों का ध्यान रखने की कोशिश की है.

आने वाले समय में ऑनलाइन क्लासेज की वजह से बच्चों को किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है? इसके जवाब में डॉ. मोहसिन ने कहा, ‘ऑनलाइन क्लासेज लगातार रहने की स्थिति में बच्चों के पोस्चर यानी की मुद्रा या आकार में बदलाव हो सकता है. बच्चों में कमर संबंधी, सर्वाइकल स्पाइन यानी गर्दन के हिस्से वाली रीढ़ की हड्डी के जोड़ों और डिस्क में समस्या और मोटापे जैसी परेशानी हो सकती है. लगातार माउस और कीबोर्ड के प्रयोग करने से उंगलियों से जुड़ी समस्याएं भी आ सकती हैं.’

डॉ. मोहसिन ने बताया कि सभी बच्चों के घर में किस तरह की सुविधा है यह पता नहीं है. वह कितनी हाइट की कुर्सी पर बैठ रहे हैं, स्क्रीन का आकार कितना बड़ा है, बैठने की मुद्रा सही है या नहीं? ये कुछ ऐसी बाते हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य को सीधे-सीधे प्रभावित करता है. सभी पढ़ने वाले बच्चों के लिए इंटरनेट की स्पीड का बेहतर होना भी जरूरी है. जिससे पढ़ाई के दौरान किसी तरह का व्यवधान ना पैदा हो और बच्चे ठीक से पढ़ाई पर ध्यान लगा सकें. उन्होंने बताया कि पढ़ाई के लिए बच्चों के स्क्रीन का साइज ब्लैकबोर्ड जितना होना चाहिए. लेकिन हमारे देश में सभी मां-बाप के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल है.

ऑनलाइन क्लासेज बच्चों की पढ़ाई के लिए कितना उपयुक्त है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारे देश में शुरुआत से गुरु शिष्य की परंपरा रही है. आप जब स्कूल में जाते हैं तो भौतिक रूप से शिक्षकों से बात करते हैं, दोस्तों से बात करते हैं और पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान दे पाते हैं. ऑनलाइन क्लासेज में इस चीज की कमी रहती है. इसलिए यह सुनिश्चित कर पाना कि बच्चों ने ठीक से समझा या नहीं मुश्किल है, निश्चय ही इससे पढ़ाई की गुणवत्ता भी खराब हो रही है.

डॉ. मोहसिन ने बताया कि मां-बाप को आने वाले समय में ज्यादा तैयार रहना होगा. उन्हें बच्चों पर खास ध्यान रखना होगा, खासकर होमवर्क के दौरान. उन्हें घर में शिक्षक की भूमिका अदा करनी होगी.

एक परिवार ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनके दो बच्चे हैं. एक दूसरी क्लास में और एक सातवीं क्लास में दोनों पढ़ाई में टॉपर हैं लेकिन इन दिनों डिजिटल क्लास में उन्हें भी समझने में काफी मेहनत करनी पड़ रही है. हालांकि धीरे-धीरे वो अब इस मीडियम को समझ रहे हैं. ऑनलाइन क्लासेज में काफी डिस्टर्बेंस भी रहती है. फिर चाहे वो नेटवर्क इशू हो या फिर वीडियो-ऑडियो क्वालिटी से जुड़ा मुद्दा. दो बच्चे होने की वजह से कई बार दोनों बच्चों की पढ़ाई एक साथ होती है, ऐसे में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने बताया कि बच्चे आजकल पढ़ाई, होमवर्क सब कुछ डिजिटल कर रहे हैं. ऐसे में किताबों से उनकी दूरी बढ़ रही है. इसलिए जरूरी है कि घर में लाइब्रेरी जैसी सुविधा दी जाए. इससे बच्चों में पढ़ने की आदत भी बनी रहती है, साथ ही वो अध्याय को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं.

इन दिनों खासकर छोटे शहरों के बच्चों के सामने, चुनौती और भी गहरी है. क्योंकि उनके घर में मोबाइल पर पढ़ाई करना किसी आर्मी ट्रेनिंग से कम नहीं है. बेगूसराय (बिहार) जिले के सदर अस्पताल सुपरिटेंडेंट डॉ. आनंद कुमार शर्मा ने बताया कि छोटे शहरों के मां-बाप के पास अच्छी क्वालिटी के मोबाइल नहीं है. उसका स्क्रीन बच्चों के स्वास्थ्य पर ज्यादा प्रभाव डालता है. साथ ही उसमें ऑडियो को लेकर भी काफी सारी समस्याएं हैं. ज्यादातर फोन की ऑडियो क्वालिटी अच्छी नहीं रहती है. साथ ही आपने अगर उसे बहुत देर तक कान से लगाए रखा तो वो गर्म हो जाता है. मोबइल का गर्म होना भी स्वास्थ्य के हिसाब से प्रतिकूल प्रभाव डालता है.

डॉ. आनंद ने बताया कि बेहतर होता अगर सरकार इस तरह के क्लासेज को टीवी पर कराती. क्योंकि टीवी की क्वालिटी बेहतर होती है. उसके स्क्रीन से सस्ते मोबाइल की तुलना में कम हानिकारक किरणें निकलती हैं. साथ ही उसका ऑडियो भी सुनने के लिहाज से पर्याप्त होता है. ऐसे में बच्चों को आगे चलकर श्रवण यानी की सुनने संबंधित समस्याओं से बचाया जा सकता है. टीवी पर क्लासेज का एक और भी फायदा है. ज्यादातर लोग टीवी को दीवार से सटा कर रखते हैं या दीवार में टांगते हैं. ऐसे में टीवी देखने की सामान्य दूरी भी तुलनात्मक रूप से बेहतर होती है. छोटे शहरों में सभी परिवारों के पास लैपटॉप या डेस्कटॉप नहीं होता है. दूसरी चीज सामन्यतया लैपटॉप और डेस्कटॉप पर काम करते हुए, स्क्रीन से एक मीटर से भी कम की दूरी रहती है. जो बच्चों के लिहाज से खतरनाक है.

सवाल ये उठता है कि मौजूदा हालात में मां-बाप के सामने रास्ता क्या है? इस सवाल के जवाब में डॉ. आनंद शर्मा ने कहा कि बच्चे ऑनलाइन क्लासेज के दौरान एंटी ग्लेयर ग्लास का प्रयोग करें. इससे मोबाइल या लैपटॉप से निकलने वाली हानिकारक किरणों का बच्चों की आंखों पर कम असर पड़ता है. साथ ही ऑडियो के लिए बेहतर क्वालिटी का हेडफोन प्रयोग करें.

ऑनलाइन क्लास मौजूदा समय की मांग है. ऐसे में मां-बाप के लिए जरूरी है कि वो ना केवल बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रखें, बल्कि उनके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें. ज्यादा देर तक लगातार कंप्यूटर स्क्रीन पर ना बैठे रहें, ब्रेक लेते रहें. साथ ही घर में रहते हुए योगा या प्राणायाम करें, जिससे कि वो मानसिक अवसाद, चिड़चिड़ापन या आंखों की समस्या से बचे रहें.

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