Krishna Janmashtami 2020: देशभर में हर साल धूमधाम के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव (Krishna Janmashtami) मनाया जाता है. जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है. दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. ऐसे में हर वर्ष कृष्णभक्त जन्माष्टमी के दिन कान्हा के नाम का व्रत रखते हैं और उनके जन्मोत्सव को पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाते हैं.
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी की तिथि: 11 अगस्त और 12 अगस्त.
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 11 अगस्त 2020 को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से.
अष्टमी तिथि समाप्त: 12 अगस्त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 13 अगस्त 2020 की सुबह 03 बजकर 27 मिनट से.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 14 अगस्त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.
कैसें रखें जन्माष्टमी का व्रत?
जनमाष्टमी के मौके पर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी श्रद्धालु अपने आराध्य का आशीर्वाद लेने के लिए व्रत रखते हैं. जन्माष्टमी का व्रत इस तरह से रखने का विधान है:
– जो लोग जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें जन्माष्टमी से एक दिन पहले केवल एक वक्त का भोजन करना चाहिए.
– जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोलते हैं.
जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन भगावन श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है. अगर आपने भी जन्माष्टमी का व्रत रखा है तो इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें:
– सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या फिर ठाकुर जी की मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराएं.
– इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं.
– अब शुद्ध जल से स्नान कराएं.
– रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना करें और फिर आरती करें.
– अब घर के सभी सदस्यों को प्रसाद दें.
– अगर आप व्रत रख रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें.
श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला .
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला .
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली .
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं .
गगन सों सुमन रासि बरसै .
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा .
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू .
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥